Decentralised Procurement Scheme "विकेन्द्रीकृत खाद्यान्न उपार्जन योजना " complete Information in Hindi Language.

विकेन्द्रीकृत खाद्यान्न उपार्जन योजना 
Decentralised Procurement Scheme

प्रस्तावना


भारत जैसे विशाल कृषि प्रधान देश में खाद्यान्न सुरक्षा सुनिश्चित करना सदैव एक प्रमुख चुनौती रही है। पहले खाद्यान्न की खरीद केवल भारतीय खाद्य निगम (FCI) द्वारा की जाती थी, जिससे राज्यों की स्थानीय आवश्यकताओं और क्षेत्रीय विविधताओं को संतुलित करना कठिन हो जाता था। इसी समस्या के समाधान हेतु विकेन्द्रीकृत खाद्यान्न उपार्जन योजना (Decentralised Procurement Scheme) की शुरुआत वर्ष 1997-98 में की गई। इसका उद्देश्य था कि राज्य सरकारें स्थानीय स्तर पर किसानों से सीधी खरीद करें और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) को अधिक प्रभावी बनाएँ।




योजना की परिभाषा


विकेन्द्रीकृत खाद्यान्न उपार्जन योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार राज्य सरकारों को अधिकार देती है कि वे किसानों से निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर गेहूँ, धान, मोटा अनाज एवं दालों की खरीद करें।

इसके बाद राज्य सरकारें ही इन खाद्यान्नों का भंडारण, परिवहन तथा सार्वजनिक वितरण प्रणाली में आवंटन करती हैं। केंद्र सरकार केवल वित्तीय सहायता एवं अंतर की भरपाई (Food Subsidy) उपलब्ध कराती है।


मुख्य उद्देश्य

किसानों को समय पर न्यूनतम समर्थन मूल्य उपलब्ध कराना।

स्थानीय स्तर पर खाद्यान्न खरीदकर भंडारण व परिवहन की लागत घटाना।

राज्यों को उनकी आवश्यकताओं के अनुसार खाद्यान्न प्रबंधन में स्वायत्तता देना।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) को अधिक पारदर्शी व प्रभावी बनाना।

खाद्यान्न की उपलब्धता सुनिश्चित करना और खाद्य सुरक्षा को मजबूत करना।

योजना की कार्यप्रणाली

1. खरीद (Procurement)

राज्य एजेंसियाँ किसानों से सीधे न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर धान, गेहूँ आदि की खरीद करती हैं।

खरीद प्रक्रिया में मंडियों, सहकारी समितियों और अन्य अधिकृत संस्थाओं की मदद ली जाती है।

2. भंडारण (Storage)

खरीदे गए खाद्यान्न का भंडारण राज्य गोदामों में किया जाता है।

इससे परिवहन लागत कम होती है और खाद्यान्न का बेहतर प्रबंधन होता है।

3. वितरण (Distribution)

राज्य सरकारें अपने सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) नेटवर्क के माध्यम से राशन कार्ड धारकों को खाद्यान्न उपलब्ध कराती हैं।

4. प्रतिपूर्ति (Reimbursement)

केंद्र सरकार राज्य सरकारों को खरीद मूल्य, परिवहन, भंडारण और वितरण की लागत का भुगतान करती है।

योजना से जुड़े लाभ


किसानों के लिए – उन्हें सीधा MSP मिलता है, बिचौलियों की भूमिका घटती है।

✅ राज्यों के लिए – अपनी आवश्यकताओं के अनुसार खाद्यान्न प्रबंधन करने की स्वतंत्रता मिलती है।

✅ आम उपभोक्ता के लिए – PDS के माध्यम से समय पर और स्थानीय स्तर पर खाद्यान्न उपलब्ध होता है।

✅ देश के लिए – खाद्यान्न सुरक्षा एवं आत्मनिर्भरता मजबूत होती है।


चुनौतियाँ

भंडारण क्षमता की कमी – कई राज्यों में गोदामों की कमी के कारण अनाज खराब होता है।

पारदर्शिता का अभाव – खरीद प्रक्रिया में अनियमितताओं और भ्रष्टाचार की शिकायतें रहती हैं।

वित्तीय बोझ – केंद्र सरकार को प्रतिपूर्ति में भारी सब्सिडी वहन करनी पड़ती है।

क्षेत्रीय असंतुलन – पंजाब, हरियाणा, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में खरीद अधिक होती है, जबकि कई राज्य पीछे रह जाते हैं।


समाधान एवं सुधार सुझाव

आधुनिक गोदाम एवं शीत भंडारण प्रणाली विकसित करना।

ई-प्रोक्योरमेंट (Online खरीद) को बढ़ावा देना।

राज्यों को अधिक तकनीकी और वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना।

किसानों को प्रशिक्षण एवं जागरूकता देना ताकि वे सीधे सरकारी खरीद में भाग लें।

सभी राज्यों में समान रूप से योजना का क्रियान्वयन सुनिश्चित करना।


1. योजना की कार्यप्रणाली (Flow Diagram)

किसान → राज्य एजेंसी (MSP पर खरीद) 

       → भंडारण गोदाम 

       → परिवहन 

       → सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) 

       → उपभोक्ता


2. लाभार्थी समूह (Infographic Style)

 

 │   किसान     │ →  │   राज्य सरकार │ →  │ आम उपभोक्ता  │

  


निष्कर्ष


विकेन्द्रीकृत खाद्यान्न उपार्जन योजना भारतीय खाद्य सुरक्षा प्रणाली की रीढ़ मानी जाती है। इसने न केवल किसानों को MSP दिलाने में मदद की है बल्कि राज्यों को खाद्यान्न प्रबंधन में स्वायत्तता भी दी है। हालांकि भंडारण, पारदर्शिता और क्षेत्रीय असंतुलन जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। यदि इन्हें दूर किया जाए तो यह योजना भारत की खाद्य सुरक्षा और आत्मनिर्भरता को और मजबूत करेगी।

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